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यु॒वं पय॑ उ॒स्रिया॑यामधत्तं प॒क्वमा॒माया॒मव॒ पूर्व्यं॒ गोः। अ॒न्तर्यद्व॒निनो॑ वामृतप्सू ह्वा॒रो न शुचि॒र्यज॑ते ह॒विष्मा॑न् ॥

English Transliteration

yuvam paya usriyāyām adhattam pakvam āmāyām ava pūrvyaṁ goḥ | antar yad vanino vām ṛtapsū hvāro na śucir yajate haviṣmān ||

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Pad Path

यु॒वम्। पयः॑। उ॒स्रिया॑याम्। अ॒ध॒त्त॒म्। प॒क्वम्। आ॒माया॑म्। अव॑। पूर्व्य॑म्। गोः। अ॒न्तः। यत्। व॒निनः॑। वा॒म्। ऋ॒त॒प्सू॒ इत्यृ॑तऽप्सू। ह्वा॒रः। न। शुचिः॑। यज॑ते। ह॒विष्मा॑न् ॥ १.१८०.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:180» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:23» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (ऋतप्सू) जल खानेहारे स्त्रीपुरुषो ! (युवम्) तुम दोनों (शुचिः) पवित्र (हविष्मान्) शुद्ध सामग्रीयुक्त (ह्वारः) क्रोध के निवारण करनेवाले सज्जन के (न) समान (वाम्) तुम दोनों की (उस्रियायाम्) गौ में (यत्) जो (पयः) दुग्ध वा (आमायाम्) जो युवावस्था को नहीं प्राप्त हुई उस गौ में (पक्वम्) अवस्था से परिपक्व भाग (गोः) गौ का (पूर्व्यम्) पूर्वज लोगों ने प्रसिद्ध किया हुआ है वा (वनिनः) किरणोंवाले सूर्यमण्डल के (अन्तः) भीतर अर्थात् प्रकाश रूप (यजते) प्राप्त होता है उसको (अवाधत्तम्) अच्छे प्रकार धारण करो ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे सूर्यमण्डल रस को खींचता है और चन्द्रमा वर्षाता, पृथिवी की पुष्टि करता वैसे अध्यापक उपदेश करनेवाले वर्त्ताव रक्खें। जैसे क्रोधादि दोषरहित जन शान्ति आदि गुणों से सुखों को प्राप्त होते हैं, वैसे तुम भी होओ ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे ऋतप्सू युवं शुचिर्हविष्मान् ह्वारो न वामुस्रियायां पयो आमायां पक्वं गोः पूर्व्यं वनिनो यद्यजतेन्तरस्ति तदवाधत्तम् ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (युवम्) युवाम् (पयः) दुग्धम् (उस्रियायाम्) गवि (अधत्तम्) दध्यातम् (पक्वम्) (आमायाम्) अप्रौढायाम् (अव) (पूर्व्यम्) पूर्वैः कृतम् (गोः) (अन्तः) (यत्) (वनिनः) रश्मिमतः (वाम्) युवयोः (ऋतप्सू) ऋतं जलं प्सातो भक्षयतस्तौ। ऋतमित्युदकना०। निघं० १। १२। (ह्वारः) ह्वरस्य क्रोधस्यायं निवारकः (न) इव (शुचिः) पवित्रः (यजते) सङ्गच्छते (हविष्मान्) शुद्धसामग्रीयुक्तः ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा सूर्य्यो रसमाकर्षति चन्द्रो वर्षयति पृथिवीं पुष्णाति तथा अध्यापकोपदेशकौ वर्त्तेतां यथा क्रोधादिदोषरहिता जनाः शान्त्यादिभिः सुखानि लभन्ते तथा युवामपि भवेतम् ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे सूर्यमंडळ रस ओढून घेते व चंद्र वर्षाव करतो व पृथ्वीला पुष्ट करतो तसे अध्यापक व उपदेशकांनी वागावे. जसे क्रोध इत्यादी दोषरहित लोक शांती इत्यादी गुणांनी सुख प्राप्त करतात, तसे तुम्ही व्हा. ॥ ३ ॥